उल्फ़त हो किसी की न मोहब्बत हो किसी की
पहलू में न दिल हो न ये हालत हो किसी की
Jaun Eliya
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मिरे मरने से तुम को फ़िक्र ऐ दिलदार कैसी है
वो मुझ से बे-ख़बर हैं उन की आदत ही कुछ ऐसी है
क्या कहूँ क्या है मेरे दिल की ख़ुशी
छुप गया यार ख़ुद-नुमा हो कर
आईना तुम्हारे नक़्श-ए-पा का
हर सुख़न में वो सेहर करते हैं
देख आओ मरीज़-ए-फ़ुर्क़त को
कहा जब तुम से चारा दर्द-ए-दिल का हो नहीं सकता
अब्र है गुलज़ार है मय है ख़ुशी का दौर है
राज़-ए-दिल लाते हैं ज़बाँ तक हम
इश्क़ में बे-ताबियाँ होती हैं लेकिन ऐ 'हसन'
हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला