शीशा उठा कर ताक़ से हम ने
ताक़ पे रख दी साक़ी तौबा
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एक कह कर जिस ने सुननी हो हज़ारों बातें
जल्वे तिरे जो रौनक़-ए-बाज़ार हो गए
मिरे मरने से तुम को फ़िक्र ऐ दिलदार कैसी है
जब मिरा महर जल्वा-गर होगा
पूछते जाते हैं ये हम सब से
आप की ज़िद ने मुझे और पिलाई हज़रत
हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला
जो ख़ास जल्वे थे उश्शाक़ की नज़र के लिए
वो मुझ से बे-ख़बर हैं उन की आदत ही कुछ ऐसी है
कौन कहता है कि आ कर देख लो
चोट जब दिल पर लगे फ़रियाद पैदा क्यूँ न हो
क्या कहूँ क्या है मेरे दिल की ख़ुशी