ओ वस्ल में मुँह छुपाने वाले
ये भी कोई वक़्त है हया का
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कहा जब तुम से चारा दर्द-ए-दिल का हो नहीं सकता
शीशा उठा कर ताक़ से हम ने
पूछते जाते हैं ये हम सब से
बोले वो बोसा-हा-ए-पैहम पर
जब मिरा महर जल्वा-गर होगा
मिल गया दिल निकल गया मतलब
देखे अगर ये गर्मी-ए-बाज़ार आफ़्ताब
गुलशन-ए-ख़ुल्द की क्या बात है क्या कहता है
हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला
दिल को जानाँ से 'हसन' समझा-बुझा के लाए थे
वो मुझ से बे-ख़बर हैं उन की आदत ही कुछ ऐसी है
एक कह कर जिस ने सुननी हो हज़ारों बातें