किस के चेहरे से उठ गया पर्दा
झिलमिलाए चराग़ महफ़िल के
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जल्वे तिरे जो रौनक़-ए-बाज़ार हो गए
तुम भी हो ख़ंजर-ए-खुशाब भी है
इश्क़ में बे-ताबियाँ होती हैं लेकिन ऐ 'हसन'
आईना तुम्हारे नक़्श-ए-पा का
पूछते जाते हैं ये हम सब से
चश्म-ए-ज़ाहिर से रुख़-ए-यार का पर्दा देखा
आप की ज़िद ने मुझे और पिलाई हज़रत
छुप गया यार ख़ुद-नुमा हो कर
देख आओ मरीज़-ए-फ़ुर्क़त को
देखे अगर ये गर्मी-ए-बाज़ार आफ़्ताब
चोट जब दिल पर लगे फ़रियाद पैदा क्यूँ न हो