जान अगर हो जान तो क्यूँ-कर न हो तुझ पर निसार
दिल अगर हो दिल तिरी सूरत पे शैदा क्यूँ न हो
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उन का जल्वा नहीं देखा जाता
आप की ज़िद ने मुझे और पिलाई हज़रत
वो मुझ से बे-ख़बर हैं उन की आदत ही कुछ ऐसी है
वो मन गए तो वस्ल का होगा मज़ा नसीब
कहा जब तुम से चारा दर्द-ए-दिल का हो नहीं सकता
जो ख़ास जल्वे थे उश्शाक़ की नज़र के लिए
किस ने सुनाया और सुनाया तो क्या सुना
मिल गया दिल निकल गया मतलब
तुम भी हो ख़ंजर-ए-खुशाब भी है
जल्वे तिरे जो रौनक़-ए-बाज़ार हो गए
ओ वस्ल में मुँह छुपाने वाले
देख आओ मरीज़-ए-फ़ुर्क़त को