हमारे घर से जाना मुस्कुरा कर फिर ये फ़रमाना
तुम्हें मेरी क़सम देखो मिरी रफ़्तार कैसी है
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किस के चेहरे से उठ गया पर्दा
आईना तुम्हारे नक़्श-ए-पा का
जो ख़ास जल्वे थे उश्शाक़ की नज़र के लिए
जल्वे तिरे जो रौनक़-ए-बाज़ार हो गए
कौन कहता है कि आ कर देख लो
अब्र है गुलज़ार है मय है ख़ुशी का दौर है
चश्म-ए-ज़ाहिर से रुख़-ए-यार का पर्दा देखा
राज़-ए-दिल लाते हैं ज़बाँ तक हम
मिल गया दिल निकल गया मतलब
गुलशन-ए-ख़ुल्द की क्या बात है क्या कहता है
इश्क़ में बे-ताबियाँ होती हैं लेकिन ऐ 'हसन'
हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला