गुलशन-ए-ख़ुल्द की क्या बात है क्या कहना है
पर हमें तेरे ही कूचे में पड़ा रहना है
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मिल गया दिल निकल गया मतलब
आप की ज़िद ने मुझे और पिलाई हज़रत
कौन कहता है कि आ कर देख लो
देखे अगर ये गर्मी-ए-बाज़ार आफ़्ताब
देख आओ मरीज़-ए-फ़ुर्क़त को
हमारे घर से जाना मुस्कुरा कर फिर ये फ़रमाना
चोट जब दिल पर लगे फ़रियाद पैदा क्यूँ न हो
गुलशन-ए-ख़ुल्द की क्या बात है क्या कहता है
मिरे मरने से तुम को फ़िक्र ऐ दिलदार कैसी है
वो मुझ से बे-ख़बर हैं उन की आदत ही कुछ ऐसी है
आई क्या जी में तेग़-ए-क़ातिल के
आईना तुम्हारे नक़्श-ए-पा का