दिल को जानाँ से 'हसन' समझा-बुझा के लाए थे
दिल हमें समझा-बुझा कर सू-ए-जानाँ ले चला
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ओ वस्ल में मुँह छुपाने वाले
आई क्या जी में तेग़-ए-क़ातिल के
देख आओ मरीज़-ए-फ़ुर्क़त को
एक कह कर जिस ने सुननी हो हज़ारों बातें
आप की ज़िद ने मुझे और पिलाई हज़रत
तुम भी हो ख़ंजर-ए-खुशाब भी है
चोट जब दिल पर लगे फ़रियाद पैदा क्यूँ न हो
पूछते जाते हैं ये हम सब से
किस के चेहरे से उठ गया पर्दा
चश्म-ए-ज़ाहिर से रुख़-ए-यार का पर्दा देखा
देखे अगर ये गर्मी-ए-बाज़ार आफ़्ताब