बोले वो बोसा-हा-ए-पैहम पर
अरे कम-बख़्त कुछ हिसाब भी है
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जो ख़ास जल्वे थे उश्शाक़ की नज़र के लिए
अब्र है गुलज़ार है मय है ख़ुशी का दौर है
कहा जब तुम से चारा दर्द-ए-दिल का हो नहीं सकता
ओ वस्ल में मुँह छुपाने वाले
चोट जब दिल पर लगे फ़रियाद पैदा क्यूँ न हो
आप की ज़िद ने मुझे और पिलाई हज़रत
देख आओ मरीज़-ए-फ़ुर्क़त को
जल्वे तिरे जो रौनक़-ए-बाज़ार हो गए
हमारे घर से जाना मुस्कुरा कर फिर ये फ़रमाना
चश्म-ए-ज़ाहिर से रुख़-ए-यार का पर्दा देखा
मिल गया दिल निकल गया मतलब