अब्र है गुलज़ार है मय है ख़ुशी का दौर है
आज तो डूबे हुए दिल को उछलने दीजिए
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उल्फ़त हो किसी की न मोहब्बत हो किसी की
हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला
तुम भी हो ख़ंजर-ए-खुशाब भी है
मिरे मरने से तुम को फ़िक्र ऐ दिलदार कैसी है
वो मन गए तो वस्ल का होगा मज़ा नसीब
कुछ हसीनों की मोहब्बत भी बुरी होती है
शीशा उठा कर ताक़ से हम ने
दिल को जानाँ से 'हसन' समझा-बुझा के लाए थे
एक कह कर जिस ने सुननी हो हज़ारों बातें
बोले वो बोसा-हा-ए-पैहम पर
कहा जब तुम से चारा दर्द-ए-दिल का हो नहीं सकता
आईना तुम्हारे नक़्श-ए-पा का