आई क्या जी में तेग़-ए-क़ातिल के
कि जुदा हो गई गले मिल के
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देखे अगर ये गर्मी-ए-बाज़ार आफ़्ताब
कहा जब तुम से चारा दर्द-ए-दिल का हो नहीं सकता
जान अगर हो जान तो क्यूँ-कर न हो तुझ पर निसार
शीशा उठा कर ताक़ से हम ने
हर सुख़न में वो सेहर करते हैं
बोले वो बोसा-हा-ए-पैहम पर
जल्वे तिरे जो रौनक़-ए-बाज़ार हो गए
छुप गया यार ख़ुद-नुमा हो कर
किस ने सुनाया और सुनाया तो क्या सुना
हाल-ए-मर्ग-ए-बे-कसी सुन कर असर कोई न हो
किस के चेहरे से उठ गया पर्दा