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वो मुझ से बे-ख़बर हैं उन की आदत ही कुछ ऐसी है - हसन बरेलवी कविता - Darsaal

वो मुझ से बे-ख़बर हैं उन की आदत ही कुछ ऐसी है

वो मुझ से बे-ख़बर हैं उन की आदत ही कुछ ऐसी है

मैं उन को याद करता हूँ मोहब्बत ही कुछ ऐसी है

मैं आऊँ वाज़ में सौ बार जब ये दिल भी आने दे

करूँ क्या वाइज़ो रिंदों की सोहबत ही कुछ ऐसी है

मैं किस गिनती में हूँ और इक मिरे दिल की हक़ीक़त क्या

हज़ारों जान देते हैं वो सूरत ही कुछ ऐसी है

कोई आए ये आती है कोई जाए ये जाता है

मिरा दिल ही कुछ ऐसा है तबीअत ही कुछ ऐसी है

हमारा क्या बिगड़ जाता 'हसन' तेरी सिफ़ारिश में

हमारी उन की अब साहिब-सलामत ही कुछ ऐसी है

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