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वो मन गए तो वस्ल का होगा मज़ा नसीब - हसन बरेलवी कविता - Darsaal

वो मन गए तो वस्ल का होगा मज़ा नसीब

वो मन गए तो वस्ल का होगा मज़ा नसीब

दिल की गिरह के साथ खुलेगा मिरा नसीब

खाएँगे रहम आप अगर दिल बिगड़ गया

हो जाएगा मिलाप अगर लड़ गया नसीब

शब भर जमाल-ए-यार हो आँखों के रू-ब-रू

जागें नसीब जिस को हो ये रतजगा नसीब

पहरा दिया है दौलत-ए-बेदार-ए-हुस्न का

सोए जो वो बग़ल में तो जागा मिरा नसीब

पहुँचा के मेरी ख़ाक दर-ए-यार तक सबा

रुख़्सत हुई ये कह कर अब आगे तिरा नसीब

ऐ दिल वो तुझ से कहते हैं मेरी बला मिले

ऐसे तिरे नसीब कहाँ ऐ बला-नसीब

जब दर्द-ए-दिल बढ़ा तो उन्हें रहम आ गया

पैदा हुई चमक तो चमकने लगा नसीब

दुश्मन को लुत्फ़-ए-वस्ल 'हसन' को ग़म-ए-फ़िराक़

हर शख़्स का जुदा है मुक़द्दर जुदा नसीब

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