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शुआ-ए-ज़र न मिली रंग-ए-शाइराना मिला - हसन अज़ीज़ कविता - Darsaal

शुआ-ए-ज़र न मिली रंग-ए-शाइराना मिला

शुआ-ए-ज़र न मिली रंग-ए-शाइराना मिला

मता-ए-नूर से क्या मुझ को मुंसिफ़ाना मिला

मैं किस से पूछूँ कि इस सैल-ए-ख़ाक से बाहर

किसे निकलना न था किस को रास्ता न मिला

कहीं दिखाई न दी अंजुम-ए-दुआ की चमक

घने अंधेरे में इक हाथ भी उठा न मिला

भटक रहा हूँ मैं इस दश्त-ए-संग में कब से

अभी तलक तो दर-ए-आईना खुला न मिला

जलाए फिरता रहा मिश्अल-ए-तजस्सुस मैं

मगर सुराग़ कहीं खोई शाम का न मिला

उगलता होगा कभी सोना चाँदी ख़ित्ता-ए-दिल

मुझे तो एक भी सिक्का यहाँ पड़ा न मिला

नवाह-ए-जाँ में वो तूफ़ान-ए-हब्स था कि 'हसन'

हवा तो क्या कि कहीं हवा न मिला

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Shua-e-zar Na Mili Rang-e-shairana Mila In Hindi By Famous Poet Hasan Aziz. Shua-e-zar Na Mili Rang-e-shairana Mila is written by Hasan Aziz. Complete Poem Shua-e-zar Na Mili Rang-e-shairana Mila in Hindi by Hasan Aziz. Download free Shua-e-zar Na Mili Rang-e-shairana Mila Poem for Youth in PDF. Shua-e-zar Na Mili Rang-e-shairana Mila is a Poem on Inspiration for young students. Share Shua-e-zar Na Mili Rang-e-shairana Mila with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.