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इक क़िस्सा-ए-तवील है अफ़्साना दश्त का - हसन अज़ीज़ कविता - Darsaal

इक क़िस्सा-ए-तवील है अफ़्साना दश्त का

इक क़िस्सा-ए-तवील है अफ़्साना दश्त का

आख़िर कहीं तो ख़त्म हो वीराना दश्त का

मुझ को भी ग़र्क़ बहर-ए-तमाशा में कर दिया

अब हद से बढ़ता जाता है दीवाना दश्त का

तावीज़-ए-आब के सिवा चारा नहीं कोई

आसेब-ए-तिश्नगी से है याराना दश्त का

तू ने शिकस्त खाई महाज़-ए-क़याम पर

अब सिक्का-ए-सफ़र में दे हर्जाना दश्त का

होता नहीं जो ख़ाली कभी जाम-ए-आफ़्ताब

दिन भर ही गर्म रहता है मय-ख़ाना दश्त का

अब ज़ुल्मतों का ख़ौफ़ नहीं ख़ाक-ए-शहर की

रौशन है शम्अ-ए-रेग से काशाना दश्त का

आदाब-ए-मुंसिफ़ी से मैं वाक़िफ़ नहीं 'हसन'

शहर-ए-ख़ता में करता हूँ जुर्माना दश्त का

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Ek Qissa-e-tawil Hai Afsana Dasht Ka In Hindi By Famous Poet Hasan Aziz. Ek Qissa-e-tawil Hai Afsana Dasht Ka is written by Hasan Aziz. Complete Poem Ek Qissa-e-tawil Hai Afsana Dasht Ka in Hindi by Hasan Aziz. Download free Ek Qissa-e-tawil Hai Afsana Dasht Ka Poem for Youth in PDF. Ek Qissa-e-tawil Hai Afsana Dasht Ka is a Poem on Inspiration for young students. Share Ek Qissa-e-tawil Hai Afsana Dasht Ka with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.