ये रात काश इसी दिलकशी से ढलती रहे
ये रात काश इसी दिलकशी से ढलती रहे
उफ़ुक़ के पास पहाड़ों में आग जलती रहे
दराज़-तर हो ख़यालों की बस्तियों का सफ़र
मिरी तलाश सदा ज़ाविए बदलती रहे
कोई चराग़ न मेरे हरीम-ए-ग़म में जले
ख़ुद अपनी आँच में ये तीरगी पिघलती रहे
शिकस्ता हो के भी नौमीद हो न दिल तेरा
बुझे चराग़ में भी रौशनी मचलती रहे
सफ़ीने डूब गए कितने दिल के सागर में
ख़ुदा करे तिरी यादों की नाव चलती रहे
(775) Peoples Rate This