गुमनाम शहीद का कतबा
सिपह-गर
ऐ शहीद-ए-हुर्मत-ए-अर्ज़-ए-वतन
तेरा लहू बुनियाद में है
ऐसी नादीदा फ़सीलों की
जो हर जानिब
वतन की सरहदों पर
दुश्मनों की राह में हाइल रहेंगी
तेरी मर्ग-ए-बे-निशाँ से
हो गया दाइम निशाँ तेरे वतन का
तू रहा गुमनाम
लेकिन ता-क़यामत नाम तेरी सर-ज़मीं का
याद रक्खा जाएगा
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