सोच का धारा
मिरी दहलीज़ का पत्थर है
तुम चाहो तो ले जाओ उसे
सब पत्थर एक से होते हैं
कल भी
इक बच्चा आया था
सहमा
सहमा
मैं ने उस से
ये बात कही
तुम चाहो तो ले जाओ उसे
सब पत्थर एक से होते हैं
बच्चा एक-दम बोल पड़ा
कुछ पत्थर हीरे होते हैं
मैं
अक़्ल-ओ-ख़िरद का शैदाई
मैं ने जब इस पर ग़ौर किया
और आँख खुली
मिरे सामने बुत था पत्थर का
पत्थर का ये बुत
मंदिर का ख़ुदा
का'बे का सनम
मज़दूर का फ़न
मैं क्या समझूँ मैं क्या जानूँ
हीरा कि सनम
पत्थर कि ख़ुदा
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