मुझे किसी से किसी बात का गिला ही नहीं
मुझे किसी से किसी बात का गिला ही नहीं
कि अपने दिल के सिवा कोई मुद्दआ' ही नहीं
तिरा करम मिरे दिन कुल्फ़तों के यूँ गुज़रे
मुझे लगा कि मिरे साथ कुछ हुआ ही नहीं
लहूलुहान हो दिल या क़लम हो सर जाना
तिरी गली के सिवा कोई रास्ता ही नहीं
कि जिस में फूल खिलें और चमन महक उठे
ये वो सहर ही नहीं है ये वो हवा ही नहीं
है ख़ुश-मिज़ाज मगर दिल की बात कैसे करें
कि एक पल को सही वो कभी खुला ही नहीं
अजब हैं इश्क़ की नाज़ुक-मिज़ाजियाँ या'नी
बुझा चराग़-ए-मोहब्बत तो फिर जला ही नहीं
ये क्या जगह है कोई सुन नहीं रहा आवाज़
पुकारता हूँ मगर कोई बोलता ही नहीं
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