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ख़ुद को पाने की जुस्तुजू है वही - हसन आबिद कविता - Darsaal

ख़ुद को पाने की जुस्तुजू है वही

ख़ुद को पाने की जुस्तुजू है वही

उस से मिलने की आरज़ू है वही

उस का चेहरा उसी के ख़द्द-ओ-ख़ाल

अपना मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू है वही

हैं उसी के ये रंग-हा-ए-सुख़न

मेरे पहलू में ख़ूब-रू है वही

कितने मौसम बदल गए लेकिन

दिल वही दिल की आरज़ू है वही

है वही शौक़-ए-चाक-दामानी

और फिर ख़्वाहिश-ए-रफ़ू है वही

सज्दा-बाज़ान-ए-शहर पाइंदा

दस्त-ए-आज़र की आबरू है वही

ख़ू-ए-तस्लीम सर सलामत-बाद

बंदगी तौक़-ए-दर-गुलू है वही

कम नहीं शोर-ए-नाला-ओ-फ़रियाद

मातम-ए-शहर आरज़ू है वही

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