ख़्वाहिश
मुझे वो ख़ौफ़ था
कि जिस से कोई भी बचा नहीं
वही तो इक सवाल था
कि जिस सवाल का जवाब
आज तक
किसी को भी मिला नहीं
बस उस के जिस्म-ओ-जाँ के बे-कनार
पानियों में पैर ने का भूत
सर पे यूँ सवार था
और ऐसा इंतिज़ार था
कि एक एक पल जो कट रहा था
बार था
ये सब जहान था फ़ुज़ूल
गर्द था ग़ुबार था
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