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क्या कहिए - हारिस ख़लीक़ कविता - Darsaal

क्या कहिए

चाय की मेज़ से लग कर मैं खड़ा था ख़ामोश

वो समोसों से भरी प्लेट लिए पास आई

और पूछा बहुत आहिस्ता से

''नाक की कील को अंग्रेज़ी में क्या कहते हैं''

उम्र होगी कोई चौबीस बरस

डेढ़ दो साल का बेटा था बहुत प्यारा सा

जो कभी गोद में होता तो कभी भाग के

आँगन में चला जाता था

नाक में बाएँ तरफ़ कील थी आँखों में चमक

और चमक वो जो गुनाहों को छुपा लेती है

काले बालों में गुँधी शाम की रानाई थी

ऐसी रानाई जो आदाब भुला देती है

ज़ब्त और फ़हम को ना-वक़्त सुला देती है

ख़ून में सोई हुई आग जगा देती है

दाद देना तो बहुत दौर की बात

एक भी नज़्म तवज्जोह से नहीं उस ने सुनी

हम कहीं और रहे और वो कहीं और रही

''नाक की कील को अंग्रेज़ी में क्या कहते हैं''

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