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इल्तिजा - हारिस ख़लीक़ कविता - Darsaal

इल्तिजा

ये औरत है

इसे तुम सात पर्दों में छुपाओ

इसे तुम बाँध कर रक्खो

ये बकरी से ज़्यादा क़ीमती है

कि बकरी दूध देती है

मगर जब काट कर खा लो

तो फिर कुछ भी नहीं रहता

ये औरत है उसे कच्चा चबा लो

फिर भी ये ज़िंदा रहेगी

और तुम्हारे काम आएगी

तुम इस के ज़ेहन ओ दिल पर

और इस के जिस्म के

एक एक हिस्से पर

ख़ला में पलने वाले ख़ौफ़ का

पहरा बिठा दो

ये माँ हो या बहन

बीवी हो महबूबा हो बेटी हो

तुम्हारी ख़ादिमा हो या तवाइफ़ हो

तुम्हारे काम आएगी

मैं इक आसी

बहुत नाचीज़ बंदा हूँ

मिरी इक इल्तिजा है

कि जब उस दिन

घनी दाढ़ी का एक इक बाल गिन कर

तुम्हें हूरें मिलेंगी

तो उन हूरों के सदक़े में

ज़मीं पर बसने वाली

इस हक़ीर औरत की सब कमज़ोरियाँ

सारी ख़ताएँ माफ़ कर देना

इसे भी बख़्शवा देना

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Iltija In Hindi By Famous Poet Haris Khaleeq. Iltija is written by Haris Khaleeq. Complete Poem Iltija in Hindi by Haris Khaleeq. Download free Iltija Poem for Youth in PDF. Iltija is a Poem on Inspiration for young students. Share Iltija with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.