आवाज़
उस की आमद के तसव्वुर से सँभलती आवाज़
उस की क़ुर्बत की तमाज़त से पिघलती आवाज़
सुब्ह-दम शोख़ परिंदों के चहकने की सदा
बंद कलियों के नए रूप की खुलती आवाज़
बहर-ए-ज़ख़्ख़ार की आदत है ये ठहरा हुआ शोर
तेज़ दरियाओं के पानी की मचलती आवाज़
कोहसारों के चटख़ने से गरजने की सदा
और चश्मों की रवानी से उछलती आवाज़
गर्दिश-ए-ख़ूँ में रवाँ दिल के धड़कने की सदा
अश्क-ए-ख़ूँ-नाब के अंदर से उबलती आवाज़
कार-ख़ानों की मशीनों की मिलों की आवाज़
गाड़ियों तांगों बसों साईकिलों की आवाज़
बहर-ओ-बर कुछ भी न होते ये जहाँ क्या होता!
गर ये आवाज़ न होती तो यहाँ क्या होता
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