ग़म-ज़दा ज़िंदगी रही न रही
ग़म-ज़दा ज़िंदगी रही न रही
ख़ुश रहे हम ख़ुशी रही न रही
ज़िंदगी की हसीन राहों में
छाँव ठंडी कभी रही न रही
चाँद-तारों में ज़िंदगी काटी
आप को याद भी रही न रही
राह-ए-मस्ती में वो चराग़ मिले
जल गए रौशनी रही न रही
जब कोई राह पर लगा ही नहीं
रहबरी रहबरी रही न रही
रह गई बात आप की चलिए
मेरी वक़अत रही रही न रही
दे के उम्मीद पूछते हैं मुझे
दिल में हसरत कोई रही न रही
उम्र गुज़री गुनाह-गारी में
फ़िक्र अंजाम की रही न रही
अपने मरकज़ पे आ गया हूँ 'हरी'
ग़म नहीं ज़िंदगी रही न रही
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