गधों का चैलन्ज
जो रहबर-ए-अक़्वाम से मौसूम गधे हैं
कम-बख़्त वो पैदाइशी मज़लूम गधे हैं
आसाइश-ओ-आराम से महरूम गधे हैं
पब्लिक की तरह जितने भी मासूम गधे हैं
इज़्ज़त है गधों की न ठिकाना है गधों का
लीडर यही कहता है ज़माना है गधों का
फ़ितरत सग-ए-ख़ूँ-ख़्वार की इंसान में आई
ग़ैरों से मोहब्बत है तो अपनों से लड़ाई
ख़ू-ए-ख़र-ए-मज़लूम बशर ने नहीं पाई
करता है मुसलमाँ की मुसलमान पिटाई
मुस्लिम की तरह कोई भी नादान नहीं है
सद-शुक्र कि ख़र इक भी मुसलमान नहीं है
हम घास का शिकवा न तलब दाल करेंगे
आवाज़ में पैदा नया सुर-ताल करेंगे
मिल-जुल के गधे ज़ुल्म को पामाल करेंगे
इंसाँ की बक़ा के लिए हड़ताल करेंगे
ऐ राहबरो चैन से जीने नहीं देंगे
इंसाँ का लहू आप को पीने नहीं देंगे
लीडर है वो ग़ुंडों को जो सरदार बनाए
इंसाँ के दिमाग़ों को शरर-बार बनाए
कुर्सी के लिए मौत के किरदार बनाए
मरने के लिए एटमी हथियार बनाए
गोलों से भरा एक भी संदूक़ नहीं है
हाथों में गधों के कोई बंदूक़ नहीं है
आलात-ए-जदल आप ने ईजाद किए हैं
पैदा भी नए तर्ज़ के जल्लाद किए हैं
कुछ जेल से क़ज़्ज़ाक़ भी आज़ाद किए हैं
वीरान मकाँ शहर भी बर्बाद किए हैं
पाँव किसी लीडर का न देंगे गधे जमने
जिस रोज़ सियासत में क़दम रख दिया हम ने
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