ये क्या ख़बर थी कि जब तुम से दोस्ती होगी
ये क्या ख़बर थी कि जब तुम से दोस्ती होगी
क़दम क़दम पे क़यामत सी इक खड़ी होगी
वहाँ पे गूँजती होगी ख़ुशी की शहनाई
यहाँ तो मय्यत-ए-अरमान उठ रही होगी
जो बे-ख़बर है अभी तक ख़ुद अपनी मंज़िल से
तो ऐसे ख़िज़्र से किस तरह रहबरी होगी
बना के ख़ाक से ख़ुद ख़ाक में मिला देना
इलाही तेरी शरीअ'त में कुछ कमी होगी
शब-ए-फ़िराक़ रक़ीब आ के दे मुझे तस्कीं
क़सम ख़ुदा की ये साज़िश भी आप की होगी
जिगर के ख़ून से तर हो न जिस का शे'र कोई
फिर उस ग़ज़ल में भला ख़ाक दिलकशी होगी
'जमाल' छूट ही जाएगा ज़ब्त का दामन
कमाल-ए-जौर में उन के अगर कमी होगी
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