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ये क्या ख़बर थी कि जब तुम से दोस्ती होगी - हरबंस लाल अनेजा 'जमाल' कविता - Darsaal

ये क्या ख़बर थी कि जब तुम से दोस्ती होगी

ये क्या ख़बर थी कि जब तुम से दोस्ती होगी

क़दम क़दम पे क़यामत सी इक खड़ी होगी

वहाँ पे गूँजती होगी ख़ुशी की शहनाई

यहाँ तो मय्यत-ए-अरमान उठ रही होगी

जो बे-ख़बर है अभी तक ख़ुद अपनी मंज़िल से

तो ऐसे ख़िज़्र से किस तरह रहबरी होगी

बना के ख़ाक से ख़ुद ख़ाक में मिला देना

इलाही तेरी शरीअ'त में कुछ कमी होगी

शब-ए-फ़िराक़ रक़ीब आ के दे मुझे तस्कीं

क़सम ख़ुदा की ये साज़िश भी आप की होगी

जिगर के ख़ून से तर हो न जिस का शे'र कोई

फिर उस ग़ज़ल में भला ख़ाक दिलकशी होगी

'जमाल' छूट ही जाएगा ज़ब्त का दामन

कमाल-ए-जौर में उन के अगर कमी होगी

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