जितने क़रीं तुम आए
जितने क़रीं तुम आए
बनते गए पराए
पास आए तुम मिरे यूँ
जैसे कि ख़्वाब आए
क्या ख़िज़्र का भरोसा
आए कि वो न आए
वाइ'ज़ बना है मय-कश
क्या क्या तग़य्युर आए
शायद क़रीं है मंज़िल
फिर पाँव डगमगाए
याद आईं चटकी कलियाँ
तुम जब भी मुस्कुराए
कह दो 'जमाल' दिल से
हम से न दिल लगाए
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