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हर ज़र्रा है जमाल की दुनिया लिए हुए - हेंसन रेहानी कविता - Darsaal

हर ज़र्रा है जमाल की दुनिया लिए हुए

हर ज़र्रा है जमाल की दुनिया लिए हुए

इंसाँ अगर हो दीदा-ए-बीना लिए हुए

कैफ़-ए-निगाह सेहर-ए-बयाँ मस्ती-ए-ख़िराम

हम आए उन की बज़्म से क्या क्या लिए हुए

नक़्श-ओ-निगार-ए-दहर की रानाइयाँ न पूछ

दर-पर्दा हैं किसी का सरापा लिए हुए

बे-लाग मैं गुज़र गया हर ख़ूब ओ ज़िश्त से

अपनी नज़र में ज़ौक़-ए-तमाशा लिए हुए

राह-ए-हयात में न मिला कोई हम-सफ़र

तन्हा चला हूँ नाम किसी का लिए हुए

बर्बाद-ए-इल्तिफ़ात की तक़दीर देखना

वो आए भी तो रंजिश बे-जा लिए हुए

हस्ती के हादसों के मुक़ाबिल डटा रहा

मैं उन की इक नज़र का सहारा लिए हुए

'रैहनी'-ए-हज़ीं है ख़िज़ाँ में ग़ज़ल-सरा

रंगीनी-ए-बहार का सौदा लिए हुए

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