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मुस्कुरा दोगे तो ये रात सँवर जाएगी - हंस राज सचदेव 'हज़ीं' कविता - Darsaal

मुस्कुरा दोगे तो ये रात सँवर जाएगी

मुस्कुरा दोगे तो ये रात सँवर जाएगी

हँस जो दोगे तो फ़ज़ा और निखर जाएगी

अपनी मंज़िल पे पहुँच जाएगी बेताब नज़र

अपने मरकज़ पे न पहुँची तो किधर जाएगी

काश उस हुस्न-ए-ख़ुद-आरा से कोई जा के कहे

ज़ुल्फ़ को लाख सँवारे ये बिखर जाएगी

मुंतज़िर शाम से उन का हूँ मगर जानता हूँ

आज की रात भी आँखों में गुज़र जाएगी

आप भी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ को हटा लें रुख़ से

मेरे छूने से तो नागिन ये बिफर जाएगी

हाल-ए-दिल क्यूँ न 'हज़ीं' आज गुलों से कह दूँ

निकहत-ए-गुल भी मिरे दोस्त के घर जाएगी

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