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ख़ुशी गर है तो क्या मातम नहीं है - हंस राज सचदेव 'हज़ीं' कविता - Darsaal

ख़ुशी गर है तो क्या मातम नहीं है

ख़ुशी गर है तो क्या मातम नहीं है

शगुफ़्ता गुल पे क्या शबनम नहीं है

किया है याद उस ने आज शायद

मिज़ाज-ए-ज़िंदगी बरहम नहीं है

किसे अपना कहें दुनिया में यारब

कोई मोनिस कोई हमदम नहीं है

तिरे जल्वों की जुरअत कैसे होगी

मिरी आँखों में इतना दम नहीं है

नज़र उन की पड़ी है जब से मुझ पर

मिरी क़िस्मत में कोई ग़म नहीं है

ख़ुशी के आँख में भर आए आँसू

वगरना चश्म मेरी नम नहीं है

मुझे ले चल 'हज़ीं' उस अंजुमन में

जहाँ महरम है ना-महरम नहीं है

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