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कशाँ कशाँ लिए जाता है कू-ए-यार मुझे - हंस राज सचदेव 'हज़ीं' कविता - Darsaal

कशाँ कशाँ लिए जाता है कू-ए-यार मुझे

कशाँ कशाँ लिए जाता है कू-ए-यार मुझे

मैं क्या करूँ नहीं दिल पर जो इख़्तियार मुझे

किसी की मध-भरी आँखों से क्या मिली आँखें

समझ रहे हैं मिरे दोस्त बादा-ख़्वार मुझे

मुझे ख़बर है कि अब तुझ को पा नहीं सकता

तो याद क्यूँ तिरी आती है बार बार मुझे

तिरे ख़याल में ख़ुद को भुला दिया इतना

न मिल सकेगी कभी तेरी रहगुज़ार मुझे

अजल से पूछ लो आने में देर क्यूँ कर दी

कि नागवार है इस वक़्त इंतिज़ार मुझे

न आए थे तो तमन्ना थी क्यूँ नहीं आए

वो आए छोड़ गए कर के बे-क़रार मुझे

'हज़ीं' तमन्ना है अब मुझ को जी से जाने की

कि जीते-जी तो किसी का मिला न प्यार मुझे

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