दो-धारी तलवार
ख़्वाहिश की तस्कीं की ख़ातिर
अपने ला-यानी जज़्बों को
लौह-ए-दिल पर आँक रहे हैं
देश बिदेश की ख़ाक छान के
गिरते पड़ते फाँक रहे हैं
अपनी दीद से ग़ाफ़िल रह कर
ना-दीदा को झाँक रहे हैं
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ख़्वाहिश की तस्कीं की ख़ातिर
अपने ला-यानी जज़्बों को
लौह-ए-दिल पर आँक रहे हैं
देश बिदेश की ख़ाक छान के
गिरते पड़ते फाँक रहे हैं
अपनी दीद से ग़ाफ़िल रह कर
ना-दीदा को झाँक रहे हैं
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