सुलगती याद से ख़ूँ अट न जाए
सुलगती याद से ख़ूँ अट न जाए
धुएँ से दिल की खाई पट न जाए
नई फ़िक्रों से भेजा फट न जाए
जो ग़म मेरा है सब में बट न जाए
सराबों को जलाए रख कि जब तक
ये चीख़ें मारती शब हट न जाए
मुसलसल बारिश-ए-उफ़्ताद सह कर
सड़क पैमाइशों की कट न जाए
बदन का घर है दीमक फैलने से
ये डर है दिल का रौज़न चट न जाए
सदा-ए-रंग छू कर पानियों का
घटा तख़्लीक़ियत की छट न जाए
'हनीफ़' आया है तुम से चाँद मिलने
दराज़ी देखो शब की घट न जाए
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