Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_6ef9f3cdd02648ea33d4eed273fc9f93, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
सिमटती शाम अगर दर्द को जगाएगी - हनीफ़ तरीन कविता - Darsaal

सिमटती शाम अगर दर्द को जगाएगी

सिमटती शाम अगर दर्द को जगाएगी

तो सुब्ह नौहा-ए-मातूब गुनगुनाएगी

मैं हँस पड़ूँगा तो फिर कस्मसा उठेगी फ़ज़ा

हवा-ए-तुंद मिरी लौ जो गुदगुदाएगी

नुमू में मौज बनेगी तमाज़त-ए-फ़र्दा

रिदा-ए-तीरगी जितने क़दम बढ़ाएगी

ज़मीन गाएगी आम और जामुनों के गीत

बरसती बदली वो सुर-ताल आज़माएगी

जहाँ पे चाँद ज़मीं से लिपट के महकेगा

नशे में चाँदनी गीत अपने गुनगुनाएगी

ज़मीं सितारे फ़लक एक होंगे गर्दिश में

रुतें वो ऐसी अगर अपने साथ लाएगी

हज़ार बुअद ओ तफ़ाउत के बावजूद 'हनीफ़'

वहाँ भी मुझ से मिलेगी जहाँ वो जाएगी

(895) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

SimaTti Sham Agar Dard Ko Jagaegi In Hindi By Famous Poet Hanif Tarin. SimaTti Sham Agar Dard Ko Jagaegi is written by Hanif Tarin. Complete Poem SimaTti Sham Agar Dard Ko Jagaegi in Hindi by Hanif Tarin. Download free SimaTti Sham Agar Dard Ko Jagaegi Poem for Youth in PDF. SimaTti Sham Agar Dard Ko Jagaegi is a Poem on Inspiration for young students. Share SimaTti Sham Agar Dard Ko Jagaegi with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.