एहसास-ए-ना-रसाई से जिस दम उदास था
एहसास-ए-ना-रसाई से जिस दम उदास था
शायद वो उस घड़ी भी मिरे आस पास था
महफ़िल में फूल ख़ुशियों के जो बाँटता रहा
तन्हाई में मिला तो बहुत ही उदास था
हर ज़ख़्म-ए-कोहना वक़्त के मरहम ने भर दिया
वो दर्द भी मिटा जो ख़ुशी की असास था
अंगड़ाई ली सहर ने तो लम्हे चहक उठे
जंगल में वर्ना रात के ख़ौफ़ ओ हिरास था
सूरज पे वक़्त का जो गहन लग गया 'हनीफ़'
देखा तो मुझ से साया मिरा ना-शनास था
(841) Peoples Rate This