तोड़ डालें हम निज़ाम-ए-ख़स्तगी
ये जहाँ कोहना दोबारा बने
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जिस्म-ओ-जाँ किस ग़म का गहवारा बने
दिल-ए-नादाँ पे शिकायत का गुमाँ क्या होगा
ये फ़ज़ा-ए-नील-गूँ ये बाल-ओ-पर काफ़ी नहीं
आह-ओ-फ़रियाद से मा'मूर चमन है कि जो था
चश्म-ए-पुर-नम अभी मरहून-ए-असर हो न सकी
रात ढलते ही सफ़ीरान-ए-क़मर आते हैं
फ़ज़ाओं में कुछ ऐसी खलबली थी
रात के दर पे ये दस्तक ये मुसलसल दस्तक
क्या नज़र की हुश्यारी ख़ुद-असीर-ए-मस्ती है
नसीम-ए-सुब्ह-ए-बहार आए दिल-ए-हज़ीं को क़रार आए
मिरी हयात अगर मुज़्दा-ए-सहर भी नहीं