कुशूद-ए-कार की ख़ातिर ख़ुदा बदलते रहे

कुशूद-ए-कार की ख़ातिर ख़ुदा बदलते रहे

चराग़-ए-नज़्र थे हर आस्ताँ पे चलते रहे

फ़क़ीर-ए-इश्क़ हैं अपना कोई ठिकाना है क्या

हवा में उड़ते रहे पानियों पर चलते रहे

हम अहल-ए-दिल ने छुआ तक नहीं कभी कोई फूल

हवा-परस्त मगर तोड़ते मसलते रहे

फिसल के तुम भी अबस सुन गए हमारे साथ

हमें तो यूँ भी फिसलना था सो फिसलते रहे

न उस के लम्स की गर्मी न उस के क़ुर्ब की आँच

तसव्वुर उस का था ऐसा कि बस पिघलते रहे

वो इक जगह न कहीं रह सका और उस के साथ

किराया-दार थे हम भी मकाँ बदलते रहे

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Kushud-e-kar Ki KHatir KHuda Badalte Rahe In Hindi By Famous Poet Haneef Najmi. Kushud-e-kar Ki KHatir KHuda Badalte Rahe is written by Haneef Najmi. Complete Poem Kushud-e-kar Ki KHatir KHuda Badalte Rahe in Hindi by Haneef Najmi. Download free Kushud-e-kar Ki KHatir KHuda Badalte Rahe Poem for Youth in PDF. Kushud-e-kar Ki KHatir KHuda Badalte Rahe is a Poem on Inspiration for young students. Share Kushud-e-kar Ki KHatir KHuda Badalte Rahe with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.