शब-ए-दराज़ का है क़िस्सा मुख़्तसर 'कैफ़ी'
शब-ए-दराज़ का है क़िस्सा मुख़्तसर 'कैफ़ी'
हुई सहर के उजालों में गुम चराग़ की लौ
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