पल-भर न बिजलियों के मुक़ाबिल ठहर सके
इतना भी कम-सवाद मिरा आशियाँ कहाँ
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(754) Peoples Rate This
हर-चंद हमा-गीर नहीं ज़ौक़-ए-असीरी
फ़ुक़दान-ए-उरूज-ए-रसन-ओ-दार नहीं है
काफ़िर सही हज़ार मगर इस को क्या कहें
वो मुझे सोज़-ए-तमन्ना की तपिश समझा गया
देखो हमारी सम्त कि ज़िंदा हैं हम अभी
जो है ताज़गी मिरी ज़ात में वही ज़िक्र-ओ-फ़िक्र-ए-चमन में है
जो मुसाफ़िर भी तिरे कूचे से गुज़रा होगा
अपनी नज़रों को भी दीवार समझता होगा
किसी के जौर-ए-मुसलसल का फ़ैज़ है 'अख़्गर'
यादों का शहर-ए-दिल में चराग़ाँ नहीं रहा
इश्क़ में दिल का ये मंज़र देखा
अज़्म-ए-सफ़र से पहले भी और ख़त्म-ए-सफ़र से आगे भी