निगाहें फेरने वाले ये नज़रें उठ ही जाती हैं
कभी बेगानगी वज्ह-ए-शनासाई भी होती है
Habib Jalib
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Rahat Indori
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(824) Peoples Rate This
पूछती रहती है जो क़ैसर-ओ-किसरा का मिज़ाज
दिल की मिरे बिसात क्या एक दिया बुझा हुआ
ये सानेहा भी बड़ा अजब है कि अपने ऐवान-ए-रंग-ओ-बू में
इश्क़ में दिल का ये मंज़र देखा
वो दिल में और क़रीब-ए-रग-ए-गुलू भी मिले
अजब है आलम अजब है मंज़र कि सकता में है ये चश्म-ए-हैरत
वो कम-सिनी में भी 'अख़्गर' हसीन था लेकिन
जो कुशूद-ए-कार-ए-तिलिस्म है वो फ़क़त हमारा ही इस्म है
जल्वों का जो तेरे कोई प्यासा नज़र आया
काफ़िर सही हज़ार मगर इस को क्या कहें
वो मुझे सोज़-ए-तमन्ना की तपिश समझा गया
इश्क़ जब मंज़िल-ए-आख़िर से गुज़रता होगा