जो मुसाफ़िर भी तिरे कूचे से गुज़रा होगा
अपनी नज़रों को भी दीवार समझता होगा
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देखना ये इश्क़ में हुस्न-ए-पज़ीराई के रंग
इश्क़ में दिल का ये मंज़र देखा
ये सानेहा भी बड़ा अजब है कि अपने ऐवान-ए-रंग-ओ-बू में
इज़हार पे भारी है ख़मोशी का तकल्लुम
जल्वों का जो तेरे कोई प्यासा नज़र आया
पूछती रहती है जो क़ैसर-ओ-किसरा का मिज़ाज
इस तरह अहद-ए-तमन्ना को गुज़ारे जाइए
देखो हमारी सम्त कि ज़िंदा हैं हम अभी
तोड़ कर जोड़ दिया करते हो क्या करते हो
आइने में है फ़क़त आप का अक्स
काफ़िर सही हज़ार मगर इस को क्या कहें
वो दिल में और क़रीब-ए-रग-ए-गुलू भी मिले