हर-चंद हमा-गीर नहीं ज़ौक़-ए-असीरी
हर पाँव में ज़ंजीर है मैं देख रहा हूँ
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फ़ुक़दान-ए-उरूज-ए-रसन-ओ-दार नहीं है
तोड़ कर जोड़ दिया करते हो क्या करते हो
बे-शक असीर-ए-गेसू-ए-जानाँ हैं बे-शुमार
शदीद तुंद हवाएँ हैं क्या किया जाए
देखिए रुस्वा न हो जाए कहीं कार-ए-जुनूँ
कोई साग़र पे साग़र पी रहा है कोई तिश्ना है
अज़्म-ए-सफ़र से पहले भी और ख़त्म-ए-सफ़र से आगे भी
आँखों में जल रहे थे दिए ए'तिबार के
जल्वों का जो तेरे कोई प्यासा नज़र आया
वो मुझे सोज़-ए-तमन्ना की तपिश समझा गया
जो कुशूद-ए-कार-ए-तिलिस्म है वो फ़क़त हमारा ही इस्म है
यादों का शहर-ए-दिल में चराग़ाँ नहीं रहा