आँखों में जल रहे थे दिए ए'तिबार के
एहसास-ए-ज़ुल्मत-ए-शब-ए-हिज्राँ नहीं रहा
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Gulzar
Jaun Eliya
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(733) Peoples Rate This
दिल की मिरे बिसात क्या एक दिया बुझा हुआ
लोग मिलने को चले आते हैं दीवाने से
ख़ल्वत-ए-जाँ में तिरा दर्द बसाना चाहे
हर तरफ़ हैं ख़ाना-बर्बादी के मंज़र बे-शुमार
काफ़िर सही हज़ार मगर इस को क्या कहें
शामिल हुए हैं बज़्म में मिस्ल-ए-चराग़ हम
जब भी उस ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की हवा आती है
हर-चंद हमा-गीर नहीं ज़ौक़-ए-असीरी
हसीन सूरत हमें हमेशा हसीं ही मालूम क्यूँ न होती
देखिए रुस्वा न हो जाए कहीं कार-ए-जुनूँ
तुम्हारी आँखों की गर्दिशों में बड़ी मुरव्वत है हम ने माना