आइने में है फ़क़त आप का अक्स
आइना आप की सूरत तो नहीं
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इश्क़ में दिल का ये मंज़र देखा
शामिल हुए हैं बज़्म में मिस्ल-ए-चराग़ हम
बे-शक असीर-ए-गेसू-ए-जानाँ हैं बे-शुमार
अपनी नज़रों को भी दीवार समझता होगा
ख़ल्वत-ए-जाँ में तिरा दर्द बसाना चाहे
संग बरसेंगे और मुस्कुराएँगे हम
किसी के जौर-ए-मुसलसल का फ़ैज़ है 'अख़्गर'
काफ़िर सही हज़ार मगर इस को क्या कहें
इस तरह अहद-ए-तमन्ना को गुज़ारे जाइए
कुश्ता-ए-ज़बत-ए-फुग़ाँ नग़्मा-ए-बे-साज़-ओ-सदा
दिल की मिरे बिसात क्या एक दिया बुझा हुआ
जब भी उस ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की हवा आती है