यादों का शहर-ए-दिल में चराग़ाँ नहीं रहा
यादों का शहर-ए-दिल में चराग़ाँ नहीं रहा
क्या कोई ग़म ही शो'ला-ब-दामाँ नहीं रहा
अब ए'तिराफ़-ए-अ'हद-ए-वफ़ा कर रहे हैं वो
जब ए'तिबार-ए-उ'म्र-ए-गुरेज़ाँ नहीं रहा
निकले कुछ और आबला-पाई की अब सबील
सहरा में कोई ख़ार-ए-मुग़ीलाँ नहीं रहा
बख़िया-गरी-ए-दिल के तसव्वुर में गुम हुए
गोया ख़याल-ए-जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ नहीं रहा
ये सोच कर कि ख़ूगर-ए-ग़म हो न जाऊँ मैं
वो सरगिराँ हुआ सितम अर्ज़ां नहीं रहा
आज़ार-ए-हिज्र अपनी जगह मुस्तक़िल मगर
दिल मुझ से तेरे क़ुर्ब का ख़्वाहाँ नहीं रहा
याद-ए-ख़ुदा ही का'बा-ए-दिल में बसाइए
अब एक बुत भी दुश्मन-ए-ईमाँ नहीं रहा
इम्कान-ए-वस्ल-ए-यार तो 'अख़्गर' कभी न था
आज़ार-ए-हिज्र-ए-यार का अरमाँ नहीं रहा
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