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तोड़ कर जोड़ दिया करते हो क्या करते हो - हनीफ़ अख़गर कविता - Darsaal

तोड़ कर जोड़ दिया करते हो क्या करते हो

तोड़ कर जोड़ दिया करते हो क्या करते हो

दिल पे यूँ मश्क-ए-जफ़ा करते हो क्या करते हो

राज़-ए-दिल फ़ाश किया करते हो क्या करते हो

नाम से मेरे हया करते हो क्या करते हो

रोज़ इक़रार-ए-वफ़ा करते हो क्या करते हो

ज़ख़्म-ए-दिल फिर से हरा करते हो क्या करते हो

तुम से मंसूब है इक अहद-ए-वफ़ा का इक़रार

तुम भी तौहीन-ए-वफ़ा करते हो क्या करते हो

शीशा-ए-दिल के बरतने का सलीक़ा देखो

तुम तो बस तोड़ दिया करते हो क्या करते हो

शौक़ को पहले ज़रा हद से सिवा होने दो

दर्द को हद से सिवा करते हो क्या करते हो

इश्वा-ए-जाँ-तलबी मोरिद-ए-इल्ज़ाम न हो

मुझ से कहते रहो क्या करते हो क्या करते हो

हर घड़ी उस लब-ए-शीरीं का तसव्वुर 'अख़्गर'

तल्ख़ जीने का मज़ा करते हो क्या करते हो

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