Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_0ac196dcc728532fdeb2f66cbebe93ad, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
शिकस्ता दिल किसी का हो हम अपना दिल समझते हैं - हनीफ़ अख़गर कविता - Darsaal

शिकस्ता दिल किसी का हो हम अपना दिल समझते हैं

शिकस्ता दिल किसी का हो हम अपना दिल समझते हैं

तिरे ग़म में ज़माने भर के ग़म शामिल समझते हैं

हुई हैं इस क़दर आसानियों से मुश्किलें पैदा

हर आसानी को हम अपनी जगह मुश्किल समझते हैं

वो ख़ुद देखे मगर उस को कोई न देखने पाए

तिरा अंदाज़ हम ऐ पर्दा-ए-हाइल समझते हैं

किसी का हाथ ज़ख़्मों पर किसी का हाथ गर्दन में

मसीहा कौन है और कौन है क़ातिल समझते हैं

हद-ए-दिल से तो बाहर दर्द तेरा हो नहीं सकता

जहाँ तक दर्द है तेरा वहाँ तक दिल समझते हैं

मजाल-ए-दीद की मोहलत न दें लेकिन ये क्या कम है

वो हम को अपनी बज़्म-ए-नाज़ के क़ाबिल समझते हैं

तअय्युन हुस्न-ए-मक़्सद का नहीं इस के सिवा कोई

ठहर जाएँ जहाँ हम बस उसे मंज़िल समझते हैं

कहाँ तक हम मुसलसल रुख़ बदलते जाएँ कश्ती का

वही तूफ़ाँ निकलता है जिसे साहिल समझते हैं

उन्हें फ़ुर्सत कहाँ ये भी ग़नीमत जानिए 'अख़्गर'

कि वो दिल को किसी ता'ज़ीर के क़ाबिल समझते हैं

(869) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Shikasta Dil Kisi Ka Ho Hum Apna Dil Samajhte Hain In Hindi By Famous Poet Haneef Akhgar. Shikasta Dil Kisi Ka Ho Hum Apna Dil Samajhte Hain is written by Haneef Akhgar. Complete Poem Shikasta Dil Kisi Ka Ho Hum Apna Dil Samajhte Hain in Hindi by Haneef Akhgar. Download free Shikasta Dil Kisi Ka Ho Hum Apna Dil Samajhte Hain Poem for Youth in PDF. Shikasta Dil Kisi Ka Ho Hum Apna Dil Samajhte Hain is a Poem on Inspiration for young students. Share Shikasta Dil Kisi Ka Ho Hum Apna Dil Samajhte Hain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.