संग बरसेंगे और मुस्कुराएँगे हम

संग बरसेंगे और मुस्कुराएँगे हम

यूँ भी कू-ए-मलामत में जाएँगे हम

आइना तेरे ग़म को दिखाएँगे हम

दिल जलेगा मगर मुस्कुराएँगे हम

हर मसर्रत से दामन बचाएँगे हम

ग़म तिरा इस तरह आज़माएँगे हम

हर मसर्रत से दामन बचाएँगे हम

अब ये सोचा है इक शख़्स की याद को

ज़िंदगी की तरह भूल जाएँगे हम

देखना बन के परवाना आओगे तुम

सूरत-ए-शम्अ' ख़ुद को जलाएँगे हम

दुश्मनों पर अगर वक़्त कोई पड़ा

दोस्तों की तरह पेश आएँगे हम

दिल को ज़ख़्मों से 'अख़्गर' सजाए हुए

रोज़ जश्न-ए-बहाराँ मनाएँगे हम

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