इतना सुकून तो ग़म-ए-पिन्हाँ में आ गया
इतना सुकून तो ग़म-ए-पिन्हाँ में आ गया
आग़ोश-ए-दिल से दामन-ए-मिज़्गाँ में आ गया
दिल अश्क बन के दीदा-ए-गिर्यां में आ गया
ख़ुर्शीद जैसे रौज़न-ए-ज़िंदाँ में आ गया
मुझ को तो रंग-ओ-बू में उलझने से था गुरेज़
मैं ने ये क्या किया कि गुलिस्ताँ में आ गया
अक्स-ए-जमाल-ए-यार ब-तदरीज-ए-ज़ौक़-ए-दीद
आँखों से दिल में दिल से रग-ए-जाँ में आ गया
फिर मेरे अपने आप में रहने का क्या सवाल
जब वो मिरे हरीम-ए-दिल-ओ-जाँ में आ गया
मरहम का नाम ले के न ज़ख़्मों को छेड़िए
मरहम भला कहाँ से नमक-दाँ में आ गया
वहशत-असर फ़ज़ा है न दीवार-ओ-दर यहाँ
बे-कार ही मैं घर से बयाबाँ में आ गया
'अख़्गर' जुनून-ए-इश्क़-ए-नवर्दी किधर गया
मजनूँ तो मेरे ख़ाना-ए-वीराँ में आ गया
(872) Peoples Rate This